
में इस देश का मजदूर हूँ
परेशानियों से मजबूर हूँ
मेरी परेशानिया है नहीं बड़ी
सिर्फ दो वक्त की रोटी ही मिल जाये
बस उतना बहुत हो जायेगा
मेरा चार दिन से भूखा बेटा सो जायेगा
दूर एक गाँव है मेरा जहाँ मेरी माँ रहती है
दिन रात मेरी फ़िक्र में न जाने कितने दर्द सहती है
एक माँ के आसु में रोकना चाहता हु
लेकिन में गांव जा नहीं सकता
क्यूंकि
में इस देश का मजदूर हु
परेशानियों से मजबूर हु
जो नेता मुझसे अनेको वादे कर गए
न जाने सही वक्त आने पर गुम से हो गए
यह शहर जो मैंने खड़े किया
उस शहर ने मुझे ही बेघर कर दिया
पर में कुछ कर नहीं सकता क्युकी
में इस देश का मजदूर हूँ
परेशानियों से मजबूर हु.
by AHAN BANSAL.
Very nice Aahan…good work..keep it up
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Thanks a lot aunty!!! Its the readers like you who encourage me to write.
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nice one….but i didn’t get the inner deep meaning i guess.
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